वो जो traffic light में पेन बेचने आया था,
मेरी jeans को अपनी उँगलियों में भींच
'1 pen ले लो न Madam ' कहके मुझे मनाया था l
उन आँखों की निश्छल चमक में मुझको
अपना हसीं बचपन नज़र आया था l
वह जो बुढ़िया फूटपाथ पे कैरी रखकर,
अपने बुढ़ापे का बोझ खुद उठाती है l
उसकी चेहरे की सिलवटें जैसे
मेरी दादी से मेल खाती हैं l
वह जो इक काँधे पे टांग के सब्ज़ी का झोला,
दुसरे हाथ से बच्चे को धकेलती हुई,
दिन भर की थकी लोकल पर चढ़ती है l
उसकी एड़ियों की अनगिनत दरारों में,
मेरी माँ की थकन छलकती है l
गलियों में टहलता बेख़ौफ़ बचपन,
फुटपाथों पे जमा हुआ आशाओं से भरा बुढ़ापा,
शिद्दत सी गूंजती उन आन्टियों की चूड़ियों की खनक
बेगाने हैं , पर कुछ अपने से लगते हैं
जितने खूबसूरत भी हैं
उतना ही दर्द भी देते हैं l
मेरी jeans को अपनी उँगलियों में भींच
'1 pen ले लो न Madam ' कहके मुझे मनाया था l
उन आँखों की निश्छल चमक में मुझको
अपना हसीं बचपन नज़र आया था l
वह जो बुढ़िया फूटपाथ पे कैरी रखकर,
अपने बुढ़ापे का बोझ खुद उठाती है l
उसकी चेहरे की सिलवटें जैसे
मेरी दादी से मेल खाती हैं l
वह जो इक काँधे पे टांग के सब्ज़ी का झोला,
दुसरे हाथ से बच्चे को धकेलती हुई,
दिन भर की थकी लोकल पर चढ़ती है l
उसकी एड़ियों की अनगिनत दरारों में,
मेरी माँ की थकन छलकती है l
गलियों में टहलता बेख़ौफ़ बचपन,
फुटपाथों पे जमा हुआ आशाओं से भरा बुढ़ापा,
शिद्दत सी गूंजती उन आन्टियों की चूड़ियों की खनक
बेगाने हैं , पर कुछ अपने से लगते हैं
जितने खूबसूरत भी हैं
उतना ही दर्द भी देते हैं l