रात भर
दर्द पिघलता रहा
मोम जैसा
और गिरता रहा
मेरी साँसों पे
ठंडा होते से चिपक जाता था
और मालूम रहता था दिन भर
तब भी जब मैं
किसी की अठखली पर
यूँही मुस्कुरा देता था
दिल रखने के लिए
उसका भी, अपना भी
balcony में बैठकर
नज़्म की नोक से कुरेदूं
तो शायद निकल जाएगा
वरना यूँ ही मुझसे चिपककर
मेरा वजूद बन जाएगा