दिन भर नयी दुल्हन के लिबास में घूमकर उषा अपने कमरे में पहुंची। दरवाज़ा बंद करते ही सारे जेवर उतारे और बिंदी शीशे पर लगा दी। उसे make-up का कतई शौक न था। ऐसा लगा की जनमों का भार उतर गया। उसे एक पिंजरे से आज़ाद होने का एहसास हुआ।
सुधा ने धीमे से खिड़की से झाँका, बाहर कोई देख नहीं रहा था। उसने झट से शीशे से चिपकी बिंदी अपने माथे पर लगा ली। दो साल हुए सुरेश के देहांत को। एक बिंदी ने जैसे पल भर में उसके विधवा होने का भार उतार दिया। उसे अपने होने का एहसास हो गया।