जब घर से वापिस आ रही थी तोह माँ ने बेसन के कुछ लड्डू दिए थे. वैसे मिठाई कुछ खास पसंद नहीं पर घर के देसी घी के बेसन के लड्डू बड़े शौक़ से खाती हूँ.
मुंबई के गर्मी में घी पिघल गया और सारे लड्डू एक साथ मिल गए. आजकल चम्मच से खुरच के हर आधे घंटे में थोडा सा खा लेती हूँ. मिठास आ जाती हैं रूह में.
काश मोहब्बत के साथ भी ऐसा होता. हमसफ़र से ले आते व्होलेसले में ढेर सारी मोहब्बत और यूँ ही खुरचन में रोज़ उसे महसूस कर पाते. पर हमेशा मन का कहाँ होता है
मुंबई के गर्मी में घी पिघल गया और सारे लड्डू एक साथ मिल गए. आजकल चम्मच से खुरच के हर आधे घंटे में थोडा सा खा लेती हूँ. मिठास आ जाती हैं रूह में.
काश मोहब्बत के साथ भी ऐसा होता. हमसफ़र से ले आते व्होलेसले में ढेर सारी मोहब्बत और यूँ ही खुरचन में रोज़ उसे महसूस कर पाते. पर हमेशा मन का कहाँ होता है