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कम्पट और candy 

4/8/2015

5 Comments

 

कम्पट का खटमीठा स्वाद तो सिर्फ कम्पट बोल कर ही आता है। जो दाँतों के बीच दबकर कट्ट की आवाज़ करे वह कम्पट, जो गाँव में चाचा की गुमटी से चार आने में खरीदा, या जो कानपूर में दादाजी कलेक्टर गंज से हमारे लिए पैकेट में भर कर ले आये वो रंग बिरंगे कम्पट। कम्पट को 'candy' कह कर हम दोनों का ही मज़ा ख़राब कर देते हैं। 

भाषा सिर्फ बात चीत का माध्यम नहीं होती , भाषा शब्दों से जीवन की तस्वीर खींचती है। भाषा हमारे भूत की साक्षी है , हमारे भविष्य का कुछ हद तक दर्शन भी। हमारी नानी हमारी भाषा जानकर वर्तमान में सहज महसूस कर सकती हैं, पर उनके संस्कारों का मज़ा चखना है तो उनकी भाषा को जानना, और उससे प्रेम करना आवश्यक है। 

मैंने अपना अधिकांश बचपन, जब हम भाषा सीखते हैं, एक गाँव में बिताया। पढाई मुख्यतः कानपुर शहर में अंग्रेजी में हुई, cindrella की कहानियां पढ़ते हुए। जब माँ ने 'Little Red  Riding Hood' को नन्ही लाल चुन्नी कहा तो मुझे लगा माँ को अंग्रेजी माध्यम में पढ़तीं तो कितना अच्छा होता।  अतः मेरी पहली कविता ' a cat on a mat' थी। अंग्रेजी में कहानियां भी लिखकर कई इनाम भी जीते, अंग्रेजी में अंक भी अधिकतर बाकी छात्रों से ज़्यादा मिलते थे मुझे। किन्तु जैसे जैसे लिखने का शौक बढ़ा मैं वो सारी छोटी छोटी चीज़ें तलाशने लगी जो मेरे बचपन की गवाह थीं। शब्दावली में कुछ शब्द तोह अंग्रेजी में मिले, पर बुकनू-रोटी का चटखारा, गरम लाही की महक,कल्लू चाचा के यहाँ खाए हुए भुने आलू का सोंधापन, बारिश में छप्पर के नीचे वह गीली मिटटी की खुशबू , मेरे दादी के होठों पे सूखती पान की लाली, ये उपमाएं अंग्रेजी में या तो थी ही नहीं, या हो सकता है इनकी जानकारी मुझे न हो. 

जैसे जैसे मन का थान खोला, कई भावनाएं ऐसी आ निकलीं जिनको मैं सिर्फ हिंदी में बयान कर सकती थी, या उसे उर्दू भी कह लें. उर्दू की लिपी तो नहीं आती, पर उत्तर प्रदेश में उर्दू और हिंदी में फर्क करना बढ़ा 'मुश्किल' है।  हिंदुस्तानी कहना ठीक हो सकता है, पर मुझे दोनों भाषाओं के अस्तित्वों को अलग रखना भी अच्छा लगता है।  

Teach for India में पढ़ाते हुए जब कहानियों में Paul और Peter जैसे नाम और 'apple pie ' जैसे शब्द आये तो मुझे लगा की बच्चे शायद वह तस्वीरें अपने जीवन के सन्दर्भ में न खींच पाएं। तब मैंने उन्हें 'ईदगाह' सुनाई। मेरी कक्षा में दीपक 'हामिद' को तुरंत पहचान गया।  हामिद ने अपने खेल के पैसे बचाकर अपनी दादी के लिए चिमटा खरीदा, तो नूर ने आधी छुट्टी में अपने ५ रुपये से बिस्कुट नहीं खरीदे. वह अपनी अम्मी के लिए कुछ खरीदना चाहता था।  मुझे तब यह एहसास हुआ की 'मंत्र' की कहानी ने मेरे ऊपर जो छाप छोड़ी है वह मेरे जीवन दर्शन का कितना बड़ा हिस्सा है। और मेरे आने वाली पीढ़ी के कई लोग शायद उससे वंचित रह जाएँ । क्यूंकि अंग्रेजी माध्यम के स्कूलों में हिंदी बस पास करने का विषय बनकर रह गयी है।  हिंदी में बोले तो ' Black Point' अंग्रेजी सिखाने का अच्छा तरीका हो सकता है , और अंग्रेजी का आना दुनियादारी के सन्दर्भ में बहुत ज़रूरी है पर अपनी भाषाओँ की इज़्ज़त कम नहीं होनी चाहिए।  

भाषा साहित्य में जीवंत रहती है। साहित्य का जितना पढ़ा जाना ज़रूरी है उतना ही लिखा जाना भी ज़रूरी है।  और उतना की आवश्यक है भाषा का इस्तेमाल होना।  किसी भी भाषा का प्रयोग न तो ज़बरदस्ती करना चाहिए , न ज़बरदस्ती बंद करना चाहिए। मुझे हिंदी उतनी अच्छी तरह से नहीं आती।  ICSE  Board में पढ़ने के कारण शेक्सपियर और डिकेन्स से मुखातिब तो हुए लेकिन अज्ञेय सिर्फ एक छोटी कहानी में सिमट गए।  फिर गुलज़ार साहब की ऊँगली पकड़ कर कवियों से मुलाक़ात हुई है, मंटो ने मर्म को हर बार छुआ, हरिवंश राय बच्चन हमराही बन साथ साथ चले।  

सच बहुत मज़ा आया।  

जिन्हें भी लिखने पढ़ने का शौक है, उनसे यह गुज़ारिश है की भारत की दूसरी भाषाओँ में  बहुत कुछ ऐसा है जो शायद अगर हम सिर्फ अंग्रेजी तक सिमट जाए तो छूट जाए।  इस साहित्य को भी थोड़ा पढ़ें।  जो स्कूलों में पढ़ाते हैं, उनसे यह निवेदन है कि अपनी कार्य शैली में ऐसा कुछ न कहें न करें जिससे यह प्रतीत हो की हिंदी या उर्दू या कोई और भाषा कमतर है।  और जिन्हे कई भाषाओँ को जानने और समझने का मौका मिला है, वह अंग्रेजी के अलावा भाषाओँ का भी सम्मान करें।  ताकि हमारे सामने एक हिंदी-भाषी और अंग्रेजी-भाषी सामान्य रूप से सहज महसूस कर सकें। भारत की कई फ़ीसदी जनता अंग्रेजी न आने पर अपने ही देश के किसी शहर में असहज महसूस करती है। इक परिपक्व समाज में ऐसा होना चिंता का विषय है।  

और इस परिस्थिति की कहीं का कहीं मैं भी ज़िम्मेदार हूँ।  

* अगर इसे पढ़कर कहीं ऐसा लगे की मैंने अंग्रेजी के विरोध में बोला है तो मैं क्षमा प्रार्थी हूँ।  मेरा ऐसा कोई आशय नहीं था।
**मुझे हिंदी में गद्य लिखने का अनुभव नहीं है, सीख रही हूँ , गल्तियां बताने से न चूंके   

5 Comments
Anu
1/30/2018 10:23:19 am

बहुत अच्छा लगा पढ़कर।

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Umesh dwivedi
2/8/2018 10:19:13 pm

मजा आ गया। कानपुर की यादें ताजा हो गई।

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Shikhar
2/21/2018 04:57:28 am

This is the best thing I would ever read. Thanks for this soulful tour into the beautiful past.

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Pankaj MJO
3/30/2018 10:12:22 am

Lakshit naam ka ladka ek din ye comment pad rha hoga confusion door krne ke liye.

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Rohit Mishra
8/9/2019 11:33:50 pm

Bachpan ki yaad dila di mam ....kampattt orange wali ...yummmmy 😋😋😋😋😋

My view - kahani kampattt pe base thi
Lekin sirf ek paragraph Rest 2 Lang ND moral teachings , Hence as per the title it's not up to the mark but I like story very much ...keep to up mam ..

Plz next topic : lal wali imli ...

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