क्या खूब करिश्मा है मोहब्बते का करिश्मा. दो शख्सों के मिलने में फ़िरदौस का आलम है.
ज़िन्दगी सीखा ही देती है ज़रूरी मसले कभी थपकी से कभी ठोकर से और कभी एक मीठी चुटकी काटके यूं तो कई शामों में साथ डूबे हैं हम, होते ही नए से निखार आते और मुझे बरसों लग जाते…
वोह दिन भी हुआ करते थे जब हर चीज़ हमेशा के लिए होती थी
उन्ही दिनों जो रिश्ते संजोये थे वोह आज तक मुकम्मल हैं आजकल तोह सबकुछ, पानी के बुलबुलों सा, बनता है बिखरता है वोह हवा के इक सर्द झोंकें की तरह था , न इतना तेज़ की तूफ़ान की तरह बुनियाद हिला दे और न साँसों की तरह हल्का जिसका एहसास ही न हो.
न उसके आने का डर होता न जाने की परवाह. बस जब रहता तोह कई एहसास कई अरमान जाग जाते, रूह मुस्कुराने लगती . उसपे न कोई हक था न उसकी कोई ज़रुरत. वोह समंदर की तरह था जो किसी का नहीं था और सबका ही था. मेरे कल का इश्तेहार आज के अख़बार में ,
बीते पलों को गुनगुनाती मेरे हाथ की घडी किताब क्यूँ आज फिर उलटी पढ़ी मैंने कहानी ज़हन में कुछ यूँ निखरी जैसे नयी दुल्हन की हल्दी हुई हो, कागज़ पर उतरेगी तोह कुमकुम से सजावट होगी
stepping down a train in kurla station .. a story strikes me :) Roz jaan rakhke waqt khareedti thi woh... aaj sareaam uski jaan neelam huee... waqt ne mudkar bhi na dekha use.
when a girl fell off a running train and broke her leg in kurla |
I do not know what the end will look like Archives
December 2014
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