मेरे देश में ,
बचपना रोज़ नज़र अंदाज़ होता रहा
Mumbai की सड़कों पर
Delhi के फुटपाथों पर
Kolkata के Red Light में
यूँ ही हर शहर की traffic light में
भूखा सोता ,
भूखा जागता ,
ज़िन्दगी के हाथों,
वह रोज़ मार खाता
अख़बारों में IMR , foeticide , Malnutrition
के आंकड़ों के पीछे से झांकता
पर वहां भी बस एक संख्या बनकर रह जाता
बचपना यूँ ही रोज़ नजअंदाज़ होता रहा
फिर एक दिन कहीं दूर किसी समंदर किनारे
उस बचपने ने दम तोड़ दिया
और अचानक हम सबको दिखने लगा
शायद इसलिए और ज़्यादा दिखा
कि वह तस्वीर उसकी ज़िन्दगी के साथ साथ
हमारी ज़िम्मेदारी से महरूम थी
उसमें किसी और का जुर्म शामिल था
किसी और की समझदारी तलब थी
हमारी ज़िम्मेदारी होती
तो शायद हम गाडी का शीशा चढ़ा लेते
Green Light होते ही निकल जाते
ज़िन्दगी चलानी है हमें
यूँ हर बच्चे को देखकर रुक तो नहीं सकते न !
बचपना रोज़ नज़र अंदाज़ होता रहा
Mumbai की सड़कों पर
Delhi के फुटपाथों पर
Kolkata के Red Light में
यूँ ही हर शहर की traffic light में
भूखा सोता ,
भूखा जागता ,
ज़िन्दगी के हाथों,
वह रोज़ मार खाता
अख़बारों में IMR , foeticide , Malnutrition
के आंकड़ों के पीछे से झांकता
पर वहां भी बस एक संख्या बनकर रह जाता
बचपना यूँ ही रोज़ नजअंदाज़ होता रहा
फिर एक दिन कहीं दूर किसी समंदर किनारे
उस बचपने ने दम तोड़ दिया
और अचानक हम सबको दिखने लगा
शायद इसलिए और ज़्यादा दिखा
कि वह तस्वीर उसकी ज़िन्दगी के साथ साथ
हमारी ज़िम्मेदारी से महरूम थी
उसमें किसी और का जुर्म शामिल था
किसी और की समझदारी तलब थी
हमारी ज़िम्मेदारी होती
तो शायद हम गाडी का शीशा चढ़ा लेते
Green Light होते ही निकल जाते
ज़िन्दगी चलानी है हमें
यूँ हर बच्चे को देखकर रुक तो नहीं सकते न !