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खुदाहाफिज़

12/16/2020

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जो कह दिया 
बन गया 
वो वक़्त के मज़ाक सा 
जो नहीं कहा 
रह गया हलक में 
वो खराश सा

होठों पे उमंग है 
ज़हन मगर उदास सा 
गम ने ओढ़ रखा है 
ख़ुशी का इक लिबास सा 

जहाँ से उठके है चले 
वो मेरे साथ हो लिया 
जो दूर होना था 
वो आ रहा है पास सा 

हर एक पल कर रहा है 
उम्र का हिसाब सा 
जो अजनबी था 
बन गया वो थोड़ा और खास सा 
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मुरीद

1/27/2016

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किसको बुरा कहें , कौन भला है यहाँ 
इंसानियत मेरे दोस्त बड़ी पेचीदा चीज़ है। 

लफ़्ज़ों की कसौटी पर हिमायती हैं सब 
ज़िन्दगी बना देती मगर कुछ को रकीब है। 

जो ज़हीन हैं ,उन्हें है शायद खबर नहीं 
अक्सर ज़हानत होती अहम की मरीज़ है। 

कितनी ही चोट खाएं ,ऐ ज़माने तुझसे हम 
सच है मगर, आज भी हम तेरे मुरीद हैं। 

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झुनझुना

11/29/2015

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सुबह सूरज उगते ही
झुनझुना बजने लगता है
कभी दफ्तर का रूप ले लेता है
कभी रिश्तों का
कभी किचन में cooker की सीटी की तरह लगता है
कभी washing machine के चलते मोटर सा
कभी newspaper में बिखरी तल्कियों में मिल जाता है
कभी चेहरों पर लकीरें बन खिलखिलाता है
झुनझुना बजता रहता है
मन बहलता रहता है
ज़िन्दगी फ़क़त इसी मन बहलने का नाम होता होगा।



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मलाल

11/28/2015

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और भी कितनी खराशें हैं मेरी माज़ी में ,
एक ज़ख्म और देने का तुम्हें कोई मलाल न हो।

वजूद मेरा तुम्हारे फ़साने में फ़क़त इतना था ,
मेरे किरदार के ख़त्म होने का तुम्हे कोई मलाल न हो।

तुम्ही एक कसूरवार नहीं , मैं भी हूँ , वक़्त भी है
मुझसे बेवफाई का तुम्हे कोई कोई मलाल न हो

बहारें आएँगी फिर से उन्हें तो आना है.
चंद-रोज़ा ख़िज़ाँ का तुम्हे कोई मलाल न हो।


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उस बच्चे की तस्वीर देखी तुमने ?

9/6/2015

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मेरे देश में ,
बचपना रोज़ नज़र अंदाज़ होता रहा
Mumbai की सड़कों पर
Delhi के फुटपाथों पर
Kolkata के Red Light में
यूँ ही हर शहर की traffic light में

भूखा सोता ,
भूखा जागता ,
ज़िन्दगी के हाथों,
वह रोज़ मार खाता
अख़बारों में IMR , foeticide , Malnutrition
के आंकड़ों के पीछे से झांकता
पर वहां भी बस एक संख्या बनकर रह जाता


बचपना यूँ ही रोज़ नजअंदाज़ होता रहा


                                                                                        फिर एक दिन कहीं दूर किसी समंदर किनारे

                                                                                उस बचपने ने दम तोड़ दिया
                                                                                और अचानक हम सबको दिखने लगा
                                                                            शायद इसलिए और ज़्यादा दिखा
                                                                                    कि वह तस्वीर उसकी ज़िन्दगी के साथ साथ
                                                                                हमारी ज़िम्मेदारी से महरूम थी
                                                                                उसमें किसी और का जुर्म  शामिल था
                                                                            किसी और की समझदारी तलब थी

                                                                                 हमारी ज़िम्मेदारी होती 
                                                                                तो शायद हम गाडी का शीशा चढ़ा लेते
                                                                              Green Light होते ही निकल जाते
                                                                            ज़िन्दगी चलानी  है  हमें
                                                                                    यूँ हर बच्चे को देखकर रुक तो नहीं सकते न !

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दुनिया -Kart

8/26/2015

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सब ऑनलाइन हो रहा है

अब सब convenient  हो जाएगा
अपनी जगह से हिलना भी नहीं पड़ेगा
कंप्यूटर पर बैठे बैठे सब घर आ जाएगा
छोटे लोगों पे अपना time waste करना नहीं पड़ेगा।

अब नाना के घर जाने से एक दिन पहले
हम धोबी का रास्ता नहीं देखेंगे
मम्मी उसकी खबर लेने को उतावली नहीं होंगी
हमें अपने नए Jeans Top  की फ़िक्र नहीं होगी
Tension  से बच जायेंगे! Tension  से बच जायेंगे !!

दूधवाले की बेटी की शादी में माँ साड़ी नहीं भिजवाएगी
मैं pocket money से पैसे बचके उसके लिए lipstick नहीं खरीदूँगी
अरे हाँ ! कोई भी त्योहारी नहीं मांगेगा।
केले खरीदने पर मोल भाव नहीं करना होगा
मुझे सब्ज़ी वाले भैया मुफ्त में धनिया मिर्च नहीं देंगे
पर wednesday को सब्ज़ी सस्ती मिल जायेगी
bookstore में कोई किताब की सलाह नहीं देगा
उसकी जगह 20% discount  ज़रूर मिल जाएगा
पैसे बच जाएंगे , पैसे बच जाएंगे।

shop  वाले uncle 'बेटा  किस company  में हो आजकल ' कहके सर नहीं खाएंगे
शॉपिंग करते वक़्त हम उन पंचायती आंटी से नहीं टकराएंगे
मोहल्ले की साड़ी बकवास हमसे दूर रहेगी
साड़ी सेंटर पर कोई माँ से नहीं पूछेगा - 'इस बार बिटिया साथ नहीं आई?'
हम नयी building में बगल वालों से  बाई के बारे में नहीं पूछेंगे
वैसे GPS वाली आंटी बहुत accurate  हैं
अब किसीसे रास्ता पूछने के लिए हम local language में 'what', 'where ' जैसे शब्द नहीं पूछेंगे  
शहर में घूमने के लिए सड़क वाले suggestions  नहीं देंगे
small  talk से बच जाएंगे ! small  talk से बच जाएंगे !

Mess  वाली अम्मा से कोई नहीं कहेगा
aunty 'थोड़ा काम तीखा बनाया करें'
खाना हमारे अनुसार ही बनाया जाएगा - calories  का count  भी दिया जायेगा
Furniture  की दूकान पर जाके varnish की बदबू नहीं सहनी पड़ेगी
stationary  shop  पर पेन चला चलाकर नहीं देखेंगे
सामान को फ़ोन पर describe नहीं करना पड़ेगा
सब ऑनलाइन ही दिख जाएगा।
मेहनत बच जायेगी , मेहनत बच जायेगी !!!

ज़बरदस्ती की small talk बंद
अब हम सिर्फ important लोगों से बातें करेंगे
सिर्फ important  काम की बातें
सच सब कुछ कितना convenient हो जायेगा !
दुनिया online बस जायेगी
दुनिया-kart बन जायेगी!!
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आज 

8/21/2015

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इक काली कुर्सी पर बैठकर
इक ही पैर के धक्के से
कुर्सी को गोल गोल घुमाकर
काटती थी वक़्त की थान
से वो कहानियाँ

सोचती थी वो वही
जो सोचा था कई बार
वही ज़िन्दगी की तिश्नगी
वही टूटे फूटे से कुछ सवाल


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दोस्ती

8/2/2015

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दोस्ती वो चीज़ है
होती बड़ी अजीब है
खून का रिश्ता नहीं
होती सबसे वो करीब है।

इक ज़रा सी बात थी
हादसे की मुलाक़ात थी
यूँ ही तुम मिल गए
ख्वाहिश थी कायनात की

आधी रात की मैग्गी थी
Naveen Market की भेलपुरी थी
IIT में सडकों पर था टुल्ला
या पोर्च पे 2 बजे का बुल्ला था

ऐसा न था हम न लड़े
मुद्दे भी आये बड़े
पर जब भी दुखों की बात थी
हम साथ साथ थे खड़े

ज़िन्दगी का क्या पता
कहाँ कहाँ घुमाएगी
पर जहाँ भी जायें हम
यह दोस्ती साथ साथ जायेगी

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समर्पण 

7/13/2015

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तिनकों से क्यों आशियाँ बनाते हो
तिनको की आदत है बिखर जाने की ।

मौसमों से क्यों दिल्लगी बढ़ाते हो
उसकी तख्दीर है पल में ही बदल जाने की।

रिश्तों में तुम खुद को ढूंढते क्यों हो
उनकी मजबूरी है शायद , मौके पे मुकर जाने की।

वक़्त को मुट्ठी में करने का हौसला है तुमको
उसकी तो फिदरत है हाथों से निकल जाने की।

ज़िन्दगी से तुम ख्वामखाह इतना उलझते क्यों हो
उसको आती है तरकीब, खुद ही सुलझ जाने की।
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बचपन के ख़ज़ाने

7/1/2015

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दालमोठ के जार में जैसे ढेरों मूंगफली के दाने
बचपन के ख़ज़ाने

जनरल कम्पार्टमेंट में मिल जाये विंडो सीट
बड़े भाई की चोरी से पहनी , उसकी favourite कमीज
भरी दोपहर को बाहर खेलने की छूट
मम्मी ने जब पकड़ा छोटे भाई का झूठ

आसमां में बुनते रोज़ तारों के नए ताने बाने
बचपन के ख़ज़ाने


पाण्डे अंकल की दूकान पर इमली का चूरन
नवरात्री में पॉकेट में मिले सिक्कों की खनखन
cibaca से निकला किसका खिलौना - हमेशा का मुद्दा
शर्त रखना , और उस शर्त पर बदना गुद्दा

जब हॉर्न पापा के स्कूटर का मिल जाए बजाने
बचपन के ख़ज़ाने


क्लास में मॉनिटर बनने की शान
cricket में पहली बैटिंग की चांस
कल की बारिश में आज का ज़ोर का छपाक
पतंग काटके औरों की, ऊंची होती अपनी नाक

DD मेट्रो देखने को जाना छत पे antenna घुमाने
बचपन के ख़ज़ाने

Trump  Cards  में मिल जाना Hit  Man  Heart
WWE 'करत करते ' कितनी पड़ती थी मार
स्कूल के बाहर मक्खियों वाला बर्फ का गोला
बड़ों को रूहअफजा, और हमको रसना cola -cola

दिल ढूंढे आज वापिस जाने के फिर से बहाने
मिल जाए फिर से वो बचपन के ख़ज़ाने।
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