किसको बुरा कहें , कौन भला है यहाँ
इंसानियत मेरे दोस्त बड़ी पेचीदा चीज़ है।
लफ़्ज़ों की कसौटी पर हिमायती हैं सब
ज़िन्दगी बना देती मगर कुछ को रकीब है।
जो ज़हीन हैं ,उन्हें है शायद खबर नहीं
अक्सर ज़हानत होती अहम की मरीज़ है।
कितनी ही चोट खाएं ,ऐ ज़माने तुझसे हम
सच है मगर, आज भी हम तेरे मुरीद हैं।