झपकियों में गुज़रती हैं रोज़ उसकी रातें,
अपने अली को भुलाने में
उन्हें वक़्त लगेगा।
आपा रोज़ सुबह उठकर आवाज़ देके मुझे उठाती,
फिर गुमसुम होकर खुद तकिये में सर छुपाती
बरसों की आदत को मिटाने में
उन्हें वक़्त लगेगा ।
करीम चाचा के घर पर अब कोई नहीं रहता है,
फूफी सूने उस आँगन में जाने से हैं कतराती
इस सन्नाटे में जीने में
उन्हें वक़्त लगेगा ।
ज़ोया का स्कूल बैग यूँ ही पड़ा हुआ है,
टीचर चली गयी हैं, क्लास भी उजड़ गया है
नए स्कूल जाने में
अभी वक़्त लगेगा ।
फ़राज़ के पैरों से गोली अब निकल गयी है,
बैसाखी के सहारे छत पे ही है टहलता
घर से बहार आने जाने में
उसे वक़्त लगेगा ।
फरहा रोज़ सपने में ज़ोरों से है चिल्लाती,
दरवाज़े की हर दस्तक पे है वह सहम जाती
वह शोर भुलाने में
उसे वक़्त लगेगा ।
खाला के साथ होते हुए भी वह है रोती,
तीन साल की ही तोह है सारा
अम्मी के बिन उसको सुलाने में
अभी वक़्त लगेगा ।
खान अंकल ठेले पे है अब पान ही लगाते,
Ice-cream लगाने का उनका दिल नहीं है करता
आखों से वह मासूम शक्लें हटाने में
उन्हें वक़्त लगेगा ।
कई मिन्नतें हुई हैं,
सियासत से कोई खबर नहीं है
इन्साफ दिलाने में
उन्हें वक़्त लगेगा ।