क्यों तमन्ना है उसे
आगे यूँ बढ़ते जाने की ?
क्यों खुद की सुध नहीं,
खबर न इस ज़माने की ?
क्यों वह अपने दिनों को
ज़िन्दगी कहता नहीं ?
क्यों उसे चोटी पे जाने
की ललक इतनी पड़ी?
क्या समझता है की
मिल पाएंगी खुशियां वहां?
यूँ अकेला चल पड़ा है
छोड़कर हर कारवां?
आज जो बहुमूल्य है
कल है उसका मोल क्या
आज जिसको पूजता है
कल वही ग्लानि भरा
सुख छलावा है मगर
कुछ तो सुकून है इस तरफ
ख्वाहिशों का अंत क्या
ले जाएँ किसको किस तरफ !
आगे यूँ बढ़ते जाने की ?
क्यों खुद की सुध नहीं,
खबर न इस ज़माने की ?
क्यों वह अपने दिनों को
ज़िन्दगी कहता नहीं ?
क्यों उसे चोटी पे जाने
की ललक इतनी पड़ी?
क्या समझता है की
मिल पाएंगी खुशियां वहां?
यूँ अकेला चल पड़ा है
छोड़कर हर कारवां?
आज जो बहुमूल्य है
कल है उसका मोल क्या
आज जिसको पूजता है
कल वही ग्लानि भरा
सुख छलावा है मगर
कुछ तो सुकून है इस तरफ
ख्वाहिशों का अंत क्या
ले जाएँ किसको किस तरफ !