इंसानियत का क़ायल , इन्सां से ही घायल थ ,
आदत से मुसाफिर था , मज़हब से वो काफ़िर था l
पुरकैफ शख्शियत थी, अंदाज़ में फ़ुग़ाँ था,
थी नीमबाज़ आँखें , ख्वाबों में आसमां था l
तजुर्बे की किताबों से अफ़साने वो चुनता था,
खामोशियों को सुनकर नज़्मों को बुनता था l
पेशे से मुहाफ़िज़ था, दिल उसका बरहना था,
रिश्तों में रूह बस्ती , मकां मगर कारवां था l
फौलाद-ए -ख़ुलूस उसका, जज़्बात-ए-लौ में पिघलता था,
तूफानों से लड़ जाता, अश्क़ों से छिलता था l
माज़ी के आईने में शक्लें बहुत अलग थी,
पर आज का वह शायर मुझसे बहुत मिलता था ll
आदत से मुसाफिर था , मज़हब से वो काफ़िर था l
पुरकैफ शख्शियत थी, अंदाज़ में फ़ुग़ाँ था,
थी नीमबाज़ आँखें , ख्वाबों में आसमां था l
तजुर्बे की किताबों से अफ़साने वो चुनता था,
खामोशियों को सुनकर नज़्मों को बुनता था l
पेशे से मुहाफ़िज़ था, दिल उसका बरहना था,
रिश्तों में रूह बस्ती , मकां मगर कारवां था l
फौलाद-ए -ख़ुलूस उसका, जज़्बात-ए-लौ में पिघलता था,
तूफानों से लड़ जाता, अश्क़ों से छिलता था l
माज़ी के आईने में शक्लें बहुत अलग थी,
पर आज का वह शायर मुझसे बहुत मिलता था ll