रोज़ रात को दूकान से आकर
सरकार ने जो बैग दिया है न
किताबों कॉपियों से
बड़े शौक से मैं सजाता हूँ
अब तोह जूते भी हैं मेरे पास
यूनिफार्म भी है
रेनकोट पहनकर तेज़ बारिश में भी
मैं रोज़ स्कूल आता हूँ
टीचर तुम क्यों रोज़ मेरी क्लास में आती नहीं?
अक्षर लिखे रहते हैं न किताब में
मैं पढ़ने की बहुत कोशिश करता हूँ
मेमसाहब का छोटू झट से पढ़ लेता है
मुझे अच्छा नहीं लगता
टीचर तुम मुझे अच्छे से पढ़ना क्यों सिखाती नहीं?
शाम को पापा काम से जब आते हैं
अपने अंगूठे की श्याही को वह छुड़ाते हैं
चाची कहती हैं की मैं भी अंगूठाछाप ही रह जाऊँगा
मेरे पास तो पेंसिल भी है कलम भी है
टीचर तुम मुझे लिखना क्यों सिखाती नहीं ?
ट्यूशन जाता हूँ मैं
दीदी मारकर कहती है
'डॉक्टर क्या दरजी भी नहीं बनेगा तू '
दादी की दवा कौन करेगा फिर?
टीचर तुम मेरे सपनों को अपना समझ के क्यों सजाती नहीं ?
क्यों टीचर?
सरकार ने जो बैग दिया है न
किताबों कॉपियों से
बड़े शौक से मैं सजाता हूँ
अब तोह जूते भी हैं मेरे पास
यूनिफार्म भी है
रेनकोट पहनकर तेज़ बारिश में भी
मैं रोज़ स्कूल आता हूँ
टीचर तुम क्यों रोज़ मेरी क्लास में आती नहीं?
अक्षर लिखे रहते हैं न किताब में
मैं पढ़ने की बहुत कोशिश करता हूँ
मेमसाहब का छोटू झट से पढ़ लेता है
मुझे अच्छा नहीं लगता
टीचर तुम मुझे अच्छे से पढ़ना क्यों सिखाती नहीं?
शाम को पापा काम से जब आते हैं
अपने अंगूठे की श्याही को वह छुड़ाते हैं
चाची कहती हैं की मैं भी अंगूठाछाप ही रह जाऊँगा
मेरे पास तो पेंसिल भी है कलम भी है
टीचर तुम मुझे लिखना क्यों सिखाती नहीं ?
ट्यूशन जाता हूँ मैं
दीदी मारकर कहती है
'डॉक्टर क्या दरजी भी नहीं बनेगा तू '
दादी की दवा कौन करेगा फिर?
टीचर तुम मेरे सपनों को अपना समझ के क्यों सजाती नहीं ?
क्यों टीचर?