सुबह सूरज उगते ही
झुनझुना बजने लगता है
कभी दफ्तर का रूप ले लेता है
कभी रिश्तों का
कभी किचन में cooker की सीटी की तरह लगता है
कभी washing machine के चलते मोटर सा
कभी newspaper में बिखरी तल्कियों में मिल जाता है
कभी चेहरों पर लकीरें बन खिलखिलाता है
झुनझुना बजता रहता है
मन बहलता रहता है
ज़िन्दगी फ़क़त इसी मन बहलने का नाम होता होगा।
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