तिनकों से क्यों आशियाँ बनाते हो
तिनको की आदत है बिखर जाने की ।
मौसमों से क्यों दिल्लगी बढ़ाते हो
उसकी तख्दीर है पल में ही बदल जाने की।
रिश्तों में तुम खुद को ढूंढते क्यों हो
उनकी मजबूरी है शायद , मौके पे मुकर जाने की।
वक़्त को मुट्ठी में करने का हौसला है तुमको
उसकी तो फिदरत है हाथों से निकल जाने की।
ज़िन्दगी से तुम ख्वामखाह इतना उलझते क्यों हो
उसको आती है तरकीब, खुद ही सुलझ जाने की।
तिनको की आदत है बिखर जाने की ।
मौसमों से क्यों दिल्लगी बढ़ाते हो
उसकी तख्दीर है पल में ही बदल जाने की।
रिश्तों में तुम खुद को ढूंढते क्यों हो
उनकी मजबूरी है शायद , मौके पे मुकर जाने की।
वक़्त को मुट्ठी में करने का हौसला है तुमको
उसकी तो फिदरत है हाथों से निकल जाने की।
ज़िन्दगी से तुम ख्वामखाह इतना उलझते क्यों हो
उसको आती है तरकीब, खुद ही सुलझ जाने की।