जज़्बात पानी जैसे तो होते हैं
पत्थरों से टकराके बिखर जाते हैं
रुई के फाहे मगर उन्हें छूते ही पी लेते हैं
दर्द किसी और का दिखता भी है
अपने जैसा चुभता भी है
ज़हन में समाके न जाने कितनी खुशियों
को मसलता भी है
आह आहटें बन कानों में खटकती रहती हैं
और मैं अपना दिल लिए बैठा रहता हूँ
की कहीं से सुकून आ जाए
अपना दर्द आसां है निभाना
रोता हूँ तो दुनिया को समझ आता हूँ
दूजे के दर्द में रोयूं
तोह पगला मैं कहा जाता हूँ
मेरा भला चाहते होंगे
मुझे न सोचने की हिदायत देते हैं
मैं कैसे समझाऊँ,
रगों में बहते जज़्बातों को
मैं रोकना चाहूँ तोह रोकूँ कैसे
अकेला पड़ जाता हूँ
तोह कलम के कान पर
खामोशियाँ कह देता हूँ
मेरे जज़्बातों को मेरे मर्म से निचोड़कर
न जाने कैसे
कलम उनकी स्याही बनाकर
सफ़्फ़ो को भिगो देता है
पत्थरों से टकराके बिखर जाते हैं
रुई के फाहे मगर उन्हें छूते ही पी लेते हैं
दर्द किसी और का दिखता भी है
अपने जैसा चुभता भी है
ज़हन में समाके न जाने कितनी खुशियों
को मसलता भी है
आह आहटें बन कानों में खटकती रहती हैं
और मैं अपना दिल लिए बैठा रहता हूँ
की कहीं से सुकून आ जाए
अपना दर्द आसां है निभाना
रोता हूँ तो दुनिया को समझ आता हूँ
दूजे के दर्द में रोयूं
तोह पगला मैं कहा जाता हूँ
मेरा भला चाहते होंगे
मुझे न सोचने की हिदायत देते हैं
मैं कैसे समझाऊँ,
रगों में बहते जज़्बातों को
मैं रोकना चाहूँ तोह रोकूँ कैसे
अकेला पड़ जाता हूँ
तोह कलम के कान पर
खामोशियाँ कह देता हूँ
मेरे जज़्बातों को मेरे मर्म से निचोड़कर
न जाने कैसे
कलम उनकी स्याही बनाकर
सफ़्फ़ो को भिगो देता है