तुम्हारे वजूद से टकराके खनकता था
तुम्हारी बातों पर खिलखिला के हँसता था
तुम्हारे हाथों से पल बा पल संवरता था
फिर
तुमसे नफरतों में जो भीतर ही भीतर सुलगता था
तुम्हारे ख्यालों से डरता था, मुकरता था
तुम्हारी यादों में सूरज से चाँद जो करता था
अब
तुम्हारी यादों को अपने हाथों से जलाकर
खाली बर्तन सा बजता है अब वो वक़्त
अपनी ही सौबत में कटता है वो वक़्त
तुम्हारी बातों पर खिलखिला के हँसता था
तुम्हारे हाथों से पल बा पल संवरता था
फिर
तुमसे नफरतों में जो भीतर ही भीतर सुलगता था
तुम्हारे ख्यालों से डरता था, मुकरता था
तुम्हारी यादों में सूरज से चाँद जो करता था
अब
तुम्हारी यादों को अपने हाथों से जलाकर
खाली बर्तन सा बजता है अब वो वक़्त
अपनी ही सौबत में कटता है वो वक़्त