सहसा शांति में शोर कैसा जागा
कान पे हाथ रखकर जो गहरा रहा है
ऐसी रौशनी जो आखों को चीरे जाती है
मूँद लूँ गर आँख, यह और बढ़ती जाती है
चल पडूँ तोह डगमगाते हैं कदम
रुक जाऊं तोह आप ही भागते हैं
न जाने की फ़िराक़ में है मन मेरा,
न जाने क्या बात है
कान पे हाथ रखकर जो गहरा रहा है
ऐसी रौशनी जो आखों को चीरे जाती है
मूँद लूँ गर आँख, यह और बढ़ती जाती है
चल पडूँ तोह डगमगाते हैं कदम
रुक जाऊं तोह आप ही भागते हैं
न जाने की फ़िराक़ में है मन मेरा,
न जाने क्या बात है