और कुछ के सिर्फ नाम रह जाते हैं
वक़्त के गर्भ में
एक निर्जीव भ्रूण सा
ऐसा रिश्ता बस्ता तो है
पर पनपता नहीं
सच कुछ रिश्ते नाम से शुरू होते हैं
और एक दिन नाम पर ही ख़त्म हो जाते हैं।
कुछ रिश्तों के नाम नहीं होते
और कुछ के सिर्फ नाम रह जाते हैं वक़्त के गर्भ में एक निर्जीव भ्रूण सा ऐसा रिश्ता बस्ता तो है पर पनपता नहीं सच कुछ रिश्ते नाम से शुरू होते हैं और एक दिन नाम पर ही ख़त्म हो जाते हैं।
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आज का दिन अच्छा गुज़रा
आज माँ से बात हो गयी खिलखिलाती अपनी हंसी से आज फिर मुलाकात हो गयी अपनी गलतियां क़ुबूल कर ली मैंने मेरी सजा भी माफ़ हो गयी कुछ असमंजस थी मन में उनके आँचल से फिर साफ़ हो गयी आज का दिन अच्छा गुज़रा आज माँ से बात हो गयी। Khan Market की नाज़ुक उन गलियों में
रोज़ एक कहकशां* को बनते देखा है कुशादा* होती हैं ख्वाहिशें कितनी अफ़सुर्दा-मिज़ाज़ों* को हँसते देखा है वसीला* सबका है जो बसता है वहां ख़िरद* को जज़्बातों का वर्क़* देता है कहते हैं कई शख़्स हकीम* उसे वो दवा में कभी दिलासा* , तो कभी तर्क* देता है कभी कबीर, कभी बुद्ध ,कभी बुल्ले शाह हदीसों* में उसके सबने अपना वजूद पाया है कई काफ़िर* उसके कूचे में होते दाखिल* हैं उसकी सौबत* में अक्सर, परस्तिश* में चूर पाया है। कहकशां* - Galaxy - Here Constellation ; कुशादा - open up ; अफ़सुर्दा-मिज़ाज़ों - melancholic वसीला - Supporter ; ख़िरद* - Rationality ; वर्क़* - The metal foil that covers sweets, हकीम* - Doctor ; दिलासा* - Condolence ; तर्क* - argument हदीसों - narrations ; काफ़िर* - non believers ; दाखिल* - enter ; सौबत* - company ; परस्तिश* - devotion In those lean lanes of Khan Market New constellations are formed every day Many desires bloom and flourish Many a depressed souls laugh everyday He supports everyone, the man of the house With emotions, the reality he seasons He is famous as a doctor Sometimes consoles, and sometimes reasons He reminisces Kabir, Buddha and Bulleh shah Everybody finds himself in his narrations Many people come in doubting him But are converted in his revelations ज़िक्र* पे उनके जाने क्यों ठहर गया है समा
गुज़िश्ता* साअतें फिर पढ़ने का जी करता है जा-ब-जा* बिखरी नीम-जां* उन यादों को ज़हन* में अपने फिर भरने का जी करता है हकीकतों से आज मन वाबस्ता* नहीं सराबों* को आब*फिर समझने का जी करता है नासेहा* सख्त* है , वो मेरा गम-ख्वार* नहीं क़ैस* से कोई गुफ्तगू फिर करने का जी करता है बड़ी मशक़्क़त* से छोड़ी थी महफ़िल जिनकी उनकी गलियों से फिर गुजरने का जी करता है। ज़िक्र* - Mention ; गुज़िश्ता* - Past, साअतों* - Period/Times ; जा-ब-जा* - Everywhere, ; नीम-जां* - Half dead, वाबस्ता* - attached नासेहा* - counsellor ; सख्त* - Strict ; गम-ख्वार* - Someone who understands pain क़ैस* - Synonym for Romeo , मशक़्क़त* - With a lot of pain An attempt at a translation Time ceased at the mention of his name With an intense desire to read the past again The memories that are strewn across life I want to imbibe in my breaths again . Reality does not seem enticing in this moment I want to get disillusioned by the mirage again My counsellor does not empathise with me I need a lover to talk about my pain again ( Here counsellor is the head and lover is the heart) I had taken great pains to leave his abode Today I want to take a stroll on his streets again. ज़िन्दगी जब भी मुझसे किसी बात पे रूठ जाती है
मैं उसे धीरे से मना लेती हूँ वो मुझसे दूर जाने को ज़िद करती है मैं उचक के उसे गले से लगा लेती हूँ काश कुछ रिश्तों के साथ ऐसा हो पाता। हर्फों *का सहारा है , नज़्मों से वाबस्ता* हूँ वक़्त की नाव पर खुद की टीस * लिखकर मैं बहा देती हूँ मेरी उल्फत* से बस एक वो ही तमकीन* नहीं वरना अजनबियों को भी अक्सर अपना मैं बना लेती हूँ हर्फों - Words, वाबस्ता : attachment, उल्फत: Affection, तमकीन*: satisfied तुम्हारी आदत में , मेरे मुक़द्दर* में वफ़ा न थी
शाम-ए-फ़िराक* में मैं हरगिज़ तुमसे खफा न थी। सराबों* ने पुकारा था मैं बेहिस* चली गयी हकीकत* मुखातिब* थी मेरे , मुझे होश-ओ-हवा* न थी । मुझसे तुमने खुदा होने का कभी दावा न किया था तुम्हारी परस्तिश* की ऐसी भी कोई वजह न थी । ज़हनतों* ने हिदायत* दी थी, अना ने भी रोका था मगर इश्क़ मज़हब था मेरा, मोहब्बत में कोई खता न थी । खुदसे वाक़िफ़* हूँ , अपनी ख़्वाहिशों पे शर्मिंदा हूँ बेहिजाब* तुम थे, तुम्हारी सौबत* में फ़क्त* मैं, मैं न थी । ***** मुक़द्दर* - Fate; शाम-ए-फ़िराक* - Night of separation; सराबों* - Mirage ; बेहिस* - Without feeling परस्तिश* - Devotion ; ज़हनतों* - Intellect ; हिदायत* - warning ; वाक़िफ़* - aware ; बेहिजाब : unpretending सौबत* - Company ; फ़क्त* - only परछाइयों से खेलती हूँ , लुक्का छुप्पी का खेल न आइस-पाइस कहके उन्हें आउट कर सकती हूँ न वो टप्पी देके अपने होने का एहसास दिलाती है किचन में प्लेट गिरने की आवाज़ अब मेरा काम नहीं रोकती न सोफे के गद्दों के बीच अब कोई कलम मिलता है खाली बाथरूम की लाइट अब खुली नहीं होती रात को उठकर कोई खिड़की अब बंद नहीं करता ठिठुरती हूँ मैं रातों को मगर कम्बल रूठे बच्चे सा कोने में पड़ा रहता है सर से नूरानी तेल की खुशबू अब नहीं आती क्रोसिन ने चम्पी की जगह जो लेली है मैंने अब रात की चाय भी बंद कर दी है, अकेले अच्छी नहीं लगती इक छोटी शिकायत का यह किस्सा क्यों बना डाला फ़क्त इक दस्तखत ने मेरे माज़ी के सफ्फो से मेरा सब कुछ कुछ मिटा डाला तुम्हारे वजूद से टकराके खनकता था
तुम्हारी बातों पर खिलखिला के हँसता था तुम्हारे हाथों से पल बा पल संवरता था फिर तुमसे नफरतों में जो भीतर ही भीतर सुलगता था तुम्हारे ख्यालों से डरता था, मुकरता था तुम्हारी यादों में सूरज से चाँद जो करता था अब तुम्हारी यादों को अपने हाथों से जलाकर खाली बर्तन सा बजता है अब वो वक़्त अपनी ही सौबत में कटता है वो वक़्त हम भक्त नहीं हम tard नहीं फ़क्त इक इन्सां की आवाज़ नहीं 336 हो या 67 नेता चाहिए सम्राट नहीं हम आम नहीं हम खास नहीं मालूम हमको है गलत सही डेवलपमेंट हमको है भाता गरीब भी नज़रअंदाज़ नहीं अनुशासन के हम अनुयायी साम्प्रदायिकता हमें बर्दाश्त नहीं कदम रखना फूँक फूँक कर तुम वोट दिया है, ईमान नहीं इतिहास से कुछ तुम भी सीखो इस बार जो है , अगली बार नहीं ! जज़्बात पानी जैसे तो होते हैं
पत्थरों से टकराके बिखर जाते हैं रुई के फाहे मगर उन्हें छूते ही पी लेते हैं दर्द किसी और का दिखता भी है अपने जैसा चुभता भी है ज़हन में समाके न जाने कितनी खुशियों को मसलता भी है आह आहटें बन कानों में खटकती रहती हैं और मैं अपना दिल लिए बैठा रहता हूँ की कहीं से सुकून आ जाए अपना दर्द आसां है निभाना रोता हूँ तो दुनिया को समझ आता हूँ दूजे के दर्द में रोयूं तोह पगला मैं कहा जाता हूँ मेरा भला चाहते होंगे मुझे न सोचने की हिदायत देते हैं मैं कैसे समझाऊँ, रगों में बहते जज़्बातों को मैं रोकना चाहूँ तोह रोकूँ कैसे अकेला पड़ जाता हूँ तोह कलम के कान पर खामोशियाँ कह देता हूँ मेरे जज़्बातों को मेरे मर्म से निचोड़कर न जाने कैसे कलम उनकी स्याही बनाकर सफ़्फ़ो को भिगो देता है |
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December 2020
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